शुरू करें ये बिजनेस, हो जाएंगे मालामाल, लघु उद्योग शुरू करने सम्बन्धी उपयोगी मार्गदर्शन, लघु उद्योग सूची, लघु उद्योग के प्रकार
किसी भी उद्योग के सफलतापूर्वक संचालन के लिए आवश्यक होता है। योग्यता, कुशल कर्मचारी, पर्याप्त साधन तथा संगठन जिसके अंतर्गत व्यवसाय की गतिविधियां संचालित की जाती है।
स्वामित्व के आधार पर व्यवसाय को निम्न वर्गों में बांटा गया हैः
1 एकल स्वामित्व
2 भागीदारी
3 सीमित दायित्व वाली कम्पनी
4 सहकारी संस्थाएं
5 विशेष विक्रय अधिकार
एकल स्वामित्व
एकल स्वामित्व एक मात्रा व्यापारी के रूप में जाना जाता है। स्वामित्व एक व्यापारिक इकाई का प्रकार है, जो एक व्यक्ति द्वारा चलाया जाता है। एकल स्वामित्व में मालिक और व्यापार में कोई कानूनी अंतर नहीं होता है।
एकल स्वामित्व में उद्यमी स्वयं सभी लाभ प्राप्त करता है तथा सभी घाटे और कर्ज के लिए भी जिम्मेदार होता है। व्यवसाय की प्रत्येक सम्पत्ति तथा ऋण उद्यमी/स्वामित्व के होते हैं। एकल स्वामित्व के अंतर्गत उद्यमी अपने कानूनी नाम के अलावा व्यवसाय के नाम का उपयोग कर सकते हैं।
लाभ
· छोटे स्तर पर उद्यम/व्यवसाय शुरू करना आसान होता है।
· व्यवसाय शुरू करने तथा चलाने के लिए छोटी मात्रा में पूंजी आवश्यक है।
· अपने स्वयं के दिशा निदेशों पर इच्छानुसार उद्यम व्यापार चला सकते हैं।
· कर निर्धारण की दृष्टि से आय के विरुद्ध कुछ व्यापारिक खर्च दिखाए जा सकते हैं।
· उद्यम व्यापार का कोई भी पहलू सार्वजनिक नहीं होता।
· यदि एक से अधिक उद्यम व्यापार करते हैं तो एक उद्यम व्यापार का घाटा दूसरे उद्यम व्यापार के मुनापेफ से घटाया जा सकता है। उद्यमी व्यापार के सभी लाभ स्वयं प्राप्त कर सकता है।
साझेदारी/भागीदारी
एक व्यापारिक संगठन जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति मिलकर व्यापार का प्रबंधन तथा संचालन करते हैं तथा समान रूप से व्यापारिक लाभों एवं ऋण के लिए उत्तरदायी होते हैं। साझेदार कहलाते हैं। साझेदारी में संसाधनों के एकत्रीकरण से जहां पूँजी अधिक उपलब्ध होती है वहीं व्यापार को कुशलता से चलाने वाले एकाधिक स्वामी भी मिलते हैं तथा किसी भागीदार के बीमार पड़ने पर भी व्यापार सुचारू रूप से चल सकता है।
यदि किसी भागीदार ने किसी नुकसानदायक अनुबंध पर जानते हुए या न जानते हुए दस्तखत कर दिये तो भागीदारी का प्रत्येक सदस्य उसके दुष्परिणामों को भुगतने के लिये बाध्य होगा। इस गंभीर परिस्थिति में साखदारों द्वारा अपन कर्ज के भुगतान के लिये अन्य सदस्यों की संपत्तियाँ उनका कोई दोष न होते हुए भी जब्त की जा सकती है तथा यदि कोई भागीदार व्यक्तिगत रूप से दिवालिया हो जाता है तो किसी भी कारण से उसका भागीदारी में हिस्सा ऋणदाताओं द्वारा जब्त किया जा सकता है। व्यक्तिगत तौर पर अन्य सदस्य दिवालिया हुए भागीदार की देनदारियों के प्रति जवाबदेह नहीं हैं लेकिन बाहरी हस्तक्षेप से व्यवसाय को बचाने के लिये अन्य समय में दिवालिया भागीदार की हिस्सेदारी खरीदना अन्य सदस्यों व व्यवसाय को आर्थिक तंगी में डाल सकता है। यहां तक कि मृत्यु भी सक्षम सदस्य को भागीदारी नियमों से मुक्ति नहीं देती और उसकी संपत्ति तथापि देय बनी रह सकती है। अपने व्यावसायिक संबंधों को वैधानिक रूप से सूचित करके और सार्वजनिक रूप से भागीदारी व्यवसाय में से अपना रिटायरमेन्ट घोषित न किया जाये तब तक अनिश्चित रूप से जवाबदेही लागू रहती है।
भागीदारी अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार हैं:
· सभी भागीदार समान रूप से पूँजी निवेश करते हैं।
· सभी भागीदार समान रूप से लाभ-हानि बांटते हैं।
· किसी भी भागीदार सदस्य की पूंजी पर कोई ब्याज नहीं दिया जाता है।
· किसी भी भागीदार को वेतन नहीं मिलता।
· व्यवसाय के परिचालन में सभी भागीदारों को समान तरजीह मिलेगी।
यह भी संभव होता है कि उपरोक्त एवं अधिनियम के अन्य कुछ प्रावधान सभी के लिये अनुकूल नहीं होते। अतः ऐसी स्थिति में व्यवसाय के प्रारंभ में ही सालिसिटर द्वारा भागीदारी अनुबंध बनवा लेना उचित होता है।
भागीदारी उद्यम व्यवसाय के लाभ
· स्वयं तथा सदस्यों द्वारा पूंजी निवेश से अधिक पूंजी की उपलब्धता।
· व्यवसाय को पूर्णतया स्वतंत्रा रूप से चलाने का आत्मविश्वास न हो तो अन्य सदस्यों के साथ जिम्मेदारियां बांटी जा सकती हैं।
· एक से अधिक विशेषज्ञता व दक्षता प्राप्त होती है। कोई भागीदार वित्तीय व्यवस्थाओं में कुशल हो सकता है तो कोई प्रबंधन में या इसी प्रकार अन्य व्यवस्था भी हो सकती है।
सीमित दायित्व वाली कंपनी
सीमित दायित्व वाली कम्पनी में जितनी पूँजी शेयर के माध्यम से निवेशित की जाती है दायित्व केवल उस सीमा तक ही सीमित होते हैं। कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत कंनी का अपने शेयरधारकों, संचालकों व प्रबंधकों से अलग अस्तित्व होता है। शेयर धारकों की जवाबदारी जारी की गई शेयर कैपीटल की दत्त अथवा अदत्त राशि तक ही सीमित होती है। कंपनी का अस्तित्व असीमित काल के लिये हो सकता है और इसमें शेयरधारकों की संख्या पर कोई सीमा नहीं होती। कंपनी अधिनियम द्वारा कंपनियों पर कई प्रकार के नियम लागू किये गये हैं। कंपनी को कुछ निश्चित बहीखाते बनाना, अंकेक्षक नियुक्त करना और कंपनी रजिस्ट्रार के पास वार्षिक विवरणी जमा करने के साथ संचालकों व देनदारियों, संपत्तियों व बंधक ऋण की जानकारी जमा करना अनिवार्य होता है। कंपनी को अस्तित्व में आने के लिये कम से कम तीन शेयर धारक एवं उनमें से एक प्रबंध संचालक होना चाहिये। कंपनियों के भी दो प्रकार होते हैं। प्रथम वह जिसे ‘पब्लिक लिमिटेड कंपनी’ कहा जाता है। इसमें पंजीकृत एवं एलौट की जाने वाली शेयर पूँजी की निम्नतम सीमा तय होती है। यह कंपनी अपने मेमोरेन्डम ऑफ एसोसिएशन के प्रावधानों के तहत जनता को अपने शेयर खरीदने के लिये आमंत्रित कर सकती है। दूसरे प्रकार में वह कंपनियां आती हैं जो सार्वजनिक क्षेत्रा की नहीं होतीं। अर्थात जो कंपनियां पब्लिक कंपनियां नहीं हैं उन्हें दूसरे वर्ग में रखा जाता है और वे निजी या प्राइवेट कहलाती हैं। सार्वजनिक कंपनियों पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध एवं कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने की बाध्यता होती है। सामान्यतया अधिकांश कंपनियां अपनी शुरूआत प्राइवेट कंपनी के तौर पर करती हैं और पब्लिक कंपनियों में केवल तभी परिवर्तित होती हैं जब उन्हें शेयरधारकों के बड़े समूह से अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है। कंपनियों को अपनी योग्य आय पर कर चुकाना होता है।
लिमिटेड कंपनी के लाभ
· सदस्यों ;संचालक व शेयर धारकद्ध की वित्तीय देनदारी केवल उतनी ही रकम तक सीमित होती है जितनी उन्होंने शेयर के लिये दी हो।
· प्रबंधन का ढांचा बिल्कुल स्पष्ट होता है जिससे नियुक्तियों, सेवानिवृत्ति या संचालकों को हटाने की प्रक्रिया सरल व नियमानुसार हो जाती है।
· यदि अतिरिक्त पूँजी की आवश्यकता हो तो इसकी पूर्ति निजी रूप से और अधिक शेयर बेचकर की जा सकती है।
· अधिक सदस्यों को शामिल करना आसान होता है।
· किसी भी सदस्य की मृत्यु, दिवालिया होना या कंपनी छोड़ना कंपनी के व्यापार के क्रिसाकलापों को प्रभावित नहीं करता।
· व्यवसाय के किसी भाग को बेचना आसान होता है।
· इन कंपनियों की साख व प्रतिष्ठा बहुत ज्यादा होती है।
प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की आवश्यकताएं
1. पंजीकृत व्यावसायिक नामः कंपनी के नाम में लिमिटेड शब्द अवश्य जुड़ा होना चाहिये। कंपनियों की पंजीकरण संस्था इस बात पर विशेष ध्यान देती है कि किसी भी विद्यमान कंपनी से मिलता जुलता या वैसा ही नाम नई कंपनी का न हो। कुछ शब्द जैसे राष्ट्रीय या संस्थान केवल विशेष परिस्थितियों में ही उपयोग किये जा सकते हैं।
2. पंजीकृत कार्यालयः जिस जगह से व्यवसाय चलाया जाये वही संस्था का पंजीकृत कार्यालय हो यह आवश्यक नहीं है। रजिस्टर्ड कार्यालय अधिकांशतः संस्था के या अकाउण्टेन्ट का पता होता है। यह वह पता होता है जहां से सभी कार्यालयीन पत्राचार होता है।
3. शेयर होल्डरः कम से कम दो शेयरधारकों का होना कंपनी के लिये अनिवार्य होता है। इन्हें ‘सदस्य’ या ‘निवेशक’ भी कहा जा सकता है निजी कंपनी में पचास की संख्या तक शेयरधारक हो सकते हैं।
4. शेयर पूँजीः कंपनी के लिये यह परम आवश्यक है कि उसके पास अधिकृत एवं घोषित शेयर कैपीटल हो जो निश्चित रकम के शेयर में विभाजित हो। छोटी कंपनियां सामान्यतया 100 रुपये की नाममात्रा पूँजी के साथ अस्तित्व में आती हैं।
5. संस्थापन प्रलेखः यह कंपनी का मूल प्रपत्रा होता है। इसमें कंपनी से संबंधित सभी जानकारी जैसे नाम, पंजीकृत कार्यालय का पता, शेयर पूँजी, दायित्वों की सीमा एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण रूप से कंपनी स्थापित करने का उद्देश्य वर्णित होता है। कंपनी के 75 प्रतिशत सदस्यों की संख्या कभी भी कंपनी के उद्देश्यों को बदल सकती है। यह धारणा भी गलत है कि यदि कंपनी के उद्देश्य को बदल सकती है। यह धारणा भी गलत है कि यदि कंपनी के उद्देश्य अनुच्छेद में वर्णित व्यवसाय के प्रकार से हटकर काम करती है तो कंपनी के संचालकों की इस बारे व्यक्तिगत जिम्मेदारी होगी। संस्थापन प्रलेख अथवा मेमोरेन्डम ऑफ एसोसिएशन पर कम से कम तीन शेयरधारकों के हस्ताक्षर होने चाहिये।
6 आर्टिकल ऑफ एसोसिएशनः इस प्रपत्रा में कंपनी की आंतरिक नियमावली दी होती है। कंपनी को शेयरधारकों से संबंध और व्यक्तिगत यप से शेयरधारकों के आपसी संबंध किस प्रकार होंगे, यह इसमें वर्णित होता है। कई कंपनियां अपना स्वयं का आर्टिकल न बनाते हुए कंपनी अधिनियम में दिये हुए प्रारूप में ही संशोधन करके उसे अपना लेती हैं।
7. स्थापना का प्रमाण-पत्राः यह वह दस्तावेज होता है जिसे मेमोरेन्डम तैयार होने व नाम तय हो जाने के बाद कंपनी रजिस्ट्रार जारी करता है। इस दस्तावेज को प्राप्त करने के बाद कंपनी वैधानिक रूप से अस्तित्व में आ जाती है और व्यापार शुरू कर सकती है।
8. लेखा परीक्षकः प्रत्येक कंपनी को एक सुयोग्य लेखा परीक्षक की नियुकित करना अनिवार्य होता है। जिसका कर्तव्य होता है कि वह कोषपाल को यह बताये कि बहीखाते लेखा सिद्धांतों के अनुसार चल रहे हैं या नहीं। कंपनी की बैलेन्स शीट तथा लाभ-हानि खाता कंपनी की वास्तविक स्थिति को दर्शाते या नहीं दर्शाते हैं तथा ये सभी दस्तावेज कंपनी अधिनियम के अनुसार बने हैं। लेखा परीक्षकों की नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति सामान्य सभा में होती है जिसमें वार्षिक लेखा विवरण प्रस्तुत किया जाता है।
9. लेखा एवं बहीखाते कंपनी अधिनियम द्वारा बहीखातों के निर्माण व तौर तरीकों के बारे में सख्त नियम बनाये गये हैं। प्रत्येक कंपनी को रिकार्ड बनाना व उसे नियमित बनाये रखना जरूरी है जो किसी समय विशेष पर वांछनीय अचूकता के साथ कंपनी की वित्तीय स्थिति दर्शा सके। इन बहीखातों में लाभ-हानि खाते के साथ बैलेन्स शीट एवं अंकेक्षक तथा संचालका की रिपोर्ट संलग्न होती है। एक नई कंपनी की लेखा अवधि इसकी वैधानिक स्थापना के दिन से शुरू होकर नियमानुसार 31 मार्च तक होती है। यदि कंपनी इस अवधि के बारे में रजिस्ट्रार के पास स्पष्टीकरण दे दे तो यह बढ़ भी सकती है। किसी भी लेखा अवधि के समाप्त होने के दस माह के भीतर खातों की एक अंकेक्षित प्रति शेयर धारकों के सामने सामान्य सभा में तथा एक प्रति कंपनी रजिस्ट्रार के पास जमा करना अनिवार्य है।
10 रजिस्टरः लेखा बही के साथ कंपनी को उसके सदस्यों के विवरण का रजिस्टर, संचालकों एवं सचिवों का रजिस्टर, शेयर हस्तांतरण का रजिस्टर, ऋण दाताओं;डिबेन्चर होल्डरद्ध का रजिस्टर बनाना अनिवार्य है।
11 कंपनी सीलः सभी कंपनियों के पास अपनी एक मुहर होनी चाहिये जो अनिवार्य रूप से शेयर सर्टिपिफकेट पर दर्ज हो तथा जब भी कंपनी कोई करार करती है तो उस पर सील का लगा होना जरूरी होता है।
सहकारी संस्थाएं
सहकारी संस्था एक कानूनी इकाई है जो स्वामित्व और लोकतांत्रिक तरीके से अपने सदस्यों के द्वारा नियंत्रित होती है। इनके सदस्यों का अक्सर उद्यम के साथ अपने उत्पादों या सेवाओं के निर्माता या उपभोक्ताओं के रूप में या इसके कर्मचारियों के रूप में निकट सम्बन्ध होता है। सहकारी संस्थाएं एक अधिनियम के तहत संचालित होती है जिसके प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं;
· सहकारी संस्था के प्रत्येक सदस्य को एक आदमी-एक मत के सिद्धान्तानुसार समान नियंत्राण का अधिकार होता है।
· वांछित योग्यता पूर्ण करने पर सदस्यता सबके लिये खुली होना चाहिये।
· मुनापेफ को संस्था के व्यवसाय में ही लगाया जा सकता है या पिफर सदस्यों की सक्रियता एवं कार्य के अनुपात में बांटा भी जा सकता है।
· ऋण या शेयर पूँजी पर ब्याज एक-निश्चित सीमा तक ही देय होता है भले ही संस्था त्रौमासिक ब्याज देने में समर्थ क्यों न हो।
सहकारिता का यह ढांचा संस्था को एवं सदस्यों को अधिकतम मुनापफा व स्वतंत्राता देने की दृष्टि से वैधानिक नहीं है। यदि यही व्यवस्था अपनानी हो तो संस्था को कंपनी रजिस्ट्रार के पास पंजीकृत कराया जा सकता है। कम से कम सात सदस्य होने चाहिये जो शुरू में पूर्णकालिक कर्मचारी न हों लिमिटेड कंपनी की ही तरह एक पंजीकृत सहकारी संस्था को अपने सदस्यों के प्रति सीमित दायित्व होता है। इसे भी वार्षिक लेखा दाखिल करना अनिवार्य होता है। लेकिन इसके लिये इन पर कोई शुल्क नहीं है। सभी सहकारी संस्थाएं पंजीकरण कराना जरूरी नहीं समझतीं क्योंकि यह कानूनन अनिवार्य नहीं है। ऐसे में इन्हें असीमित दायित्व के साथ साझेदारी के रूप में कानूनी दृष्टि से वर्गीकृत किया जाता है।
विशेष विक्रय अधिकार
इसके अंतर्गत एक अन्य फर्म के सपफल व्यापार मॉडल का उपयोग किया जाता है। विशेष विक्रय अधिकार स्वामित्व एवं रोजगार के बीच की स्थिति होती है। इसके एक छोटे व्यवसाय को चलाने के सभी आकर्षण जहां मौजूद हैं वही अवांछित नुकसान या खतरे से बचने की भी व्यवस्था हो जाती है। उदाहरणार्थ लघु व्यवसाय के पूरे क्षेत्रा की तुलना में विशेष विक्रय अधिकार देने वाले और लेने वाले का असपफलता अनुपात बहुत कम है।
विशेष विक्रय अधिकार के प्रकार
डिस्ट्रीब्यूटरशिपः यह किसी विशेष उत्पाद के लिये हो सकती है। कई बार इसे एक एजेन्सी के तौर पर भी समझा जाता है। लेकिन इन दोनों अवधारणाओं में अन्तर है। एक एजेंट अपने प्रदाता के पक्ष पर कार्य करता है। भले ही उसके पास एक से अधिक वस्तुओं व सेवाओं की एजेंसी हो। जो एक एजेंट किसी तीसरे पक्षकार को बताता, दिखाता या प्रदर्शित करता है वह उसके नियोक्ता के लिये बाध्यता होती है। डिस्ट्रीब्यूटरशिप एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें दोनों पार्टियां कानूनन स्वतंत्रा हैं जैसे एक विक्रेता और खरीददार होते हैं। अपेक्षित केवल इतना होता है कि खरीददार या डिस्ट्रीब्यूटरशिप लेने वाला विक्रेता या डिस्ट्रीब्यूटरशिप देने वालों की प्रचार-प्रसार, विपणन, स्टापफ के प्रशिक्षण इत्यादि सुविधाओं के प्राप्त करने के बाद कुछ विशेष क्षेत्रीय अधिकारों के विनियम के साथ पर्याप्त स्टॉक बनाये रखें तथा अपने प्रतिष्ठान का रखरखाव इस प्रकार करेगा जिससे विक्रेता के उत्पाद या सेवा की गुणवत्ता श्रेष्ठ प्रदर्शित होती है।
उत्पादन के लिये लाइसेन्सः यह किसी क्षेत्रा में किसी समय के अन्तराल में उत्पाद विशेष के लिये लागू होता है। लाइसेन्स प्राप्त करने वाला इसमें निहित किसी भी गोपनीय प्रक्रिया को हासिल व इस्तेमाल कर सकता है तथा उत्पाद के नाम के लिये बिक्री पर रॉयल्टी भी प्राप्त कर सकता है। वैसे तो लाइसेन्स देने वाला और प्राप्त करने वाला एक दूसरे से स्वतंत्रा हैं सिवाय इस बात के कि लाइसेन्स हासिल करने वाला देने वाले के उत्पाद की छवि श्रेष्ठ बनाये रखे।
व्यापार चिन्ह का इस्तेमालः इसमें किसी व्यक्तिगत नाम के स्थान पर कुछ लाइसेन्स के तहत एक बहुप्रचारित व लोकप्रिय उत्पाद का पफीस के बदले व्यावसायिक इस्तेमाल किया जाता है।
लाभ
अधिकार देने वाले को यह लाभ होता है कि उसे व्यापारिक प्रतिष्ठान में कोई सीधा निवेश नहीं करना पड़ता, जबकि नाम उसी का होता है। काम आने वाले उपकरण एवं सामग्री प्रेफन्चाइजी लेने वाले के होते हैं। सर्वाधिक अनुकूल जगहों की अब अनुपलब्धता के कारण प्रेफन्चाइजी के नाम पर लीज हासिल करने का चलन प्रेफन्चाइजर्स में बढ़ रहा है। प्रेफन्चाइजर की वित्तीय तरलता का नई शाखाएं खोलने में बड़ा विलक्षण प्रभाव पड़ता है। यद्यपि प्रेफन्चाइजर को प्रेफन्चाइजी नियुक्त करने, निगरानी करने व अन्य कार्यक्रमों में भारी खर्च आता है तथापि इसके प्रभाव में कोइ्र कमी नहीं देखी गई है। इसके बाद भी ऐसे मामलों में प्रेफन्चाइजी को कई प्रकार की सुविधाएँ व सेवाएं देनी पड़ती हैं जैसे शोध एवं अनुसंधान, प्रबन्धन में सहायता, आपस में जानकारियों का आदान-प्रदान इत्यादि। इन सबके लिये भी प्रेफन्चाइजर पर खर्च आता है। इस सारे निवेश के उपरांत प्रेफन्चाइजर यह अपेक्षा करता है कि व्यापार का स्वामी होने के नाते प्रेफन्चाइजी स्थानीय बाजार की आवश्यकताओं व परिस्थितियों के प्रति अधिक सजग होगा और ज्यादा से ज्यादा व्यापार करने की कोशिश करेगा। इससे प्रेफन्चाइजी की आय जहां बढ़ेगी वहीं प्रेफन्चाइजी से मिलने वाला हिस्सा भी प्रेफन्चाइजर को बढ़कर मिलेगा। इस प्रकार बिना किसी प्रत्यक्ष निवेश के प्रेफन्चाइजर व्यापार विस्तार का साथ प्राप्त कर सकता है।
List of Suggested Small Scale Projects/ Business:
Safe meat & milk
Safety matches
Safety Pins (and other similar products like paper pins, staples pins etc.)
Sanitary Plumbing fittings
Sanitary Towels
Scientific Laboratory glasswares (Barring sophisticated items)
Scissors cutting (ordinary)
Screws of all types including High Tensile
Sheep skin all types
Shellac
Shoe laces
Shovels
Sign Boards painted
Silk ribbon
Silk Webbing
Skiboots & shoes
Sluice Valves
Snapfastner (Excluding 4 pcs. ones)
Soap Curd
Soap Liquid
Soap Soft
Soap washing or laundary soap
Soap Yellow
Socket/pipes
Sodium Nitrate
Sodium Silicate
Sole leather
Spectacle frames
Sports shoes made out of leather (for all Sports games)
Stapling machine
Surgical Gloves (Except Plastic)
Table knives (Excluding Cutlery)
Tack Metallic
Taps
Tarpaulins
Teak fabricated round blocks
Tent Poles
Tentage Civil/Military & Salitah Jute for Tentage
Textiles manufacturers other than N.E.C. (not elsewhere classified)
Tiles
Tin Boxes for postage stamp
Tin can unprinted upto 4 gallons capacity (other than can O.T.S.)
Tin Mess
Toggle Switches
Toilet Rolls
Trays for postal use
Trolley
Trollies - drinking water
Tubular Poles
Tyres & Tubes (Cycles)
Umbrellas
Utensils all types
Valves Metallic
Varnish Black Japan
Voltage Stablisers including C.V.T's
Washers all types
Water Proof Covers
Water Proof paper
Water tanks upto 15,000 litres capacity
Wax sealing
Waxed paper
Wheel barrows
Whistle
Wicks cotton
Wing Shield Wipers (Arms & Blades only)
Wire brushes and Fibre Brushes
Wire Fencing & Fittings
Wooden Boxes and Cases N.E.C. (Not elsewhere classified)
Wooden Chairs
Wooden Flush Door Shutters
Woollen hosiery
Zinc Sulphate
Zip Fasteners
See more
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लघु उद्योग, लघु उद्योगों के उद्देश्य, भारतीय लघु उद्योग, लघु उद्योग शुरू करने सम्बन्धी मार्गदर्शन, कम निवेश मे करे बिजनेस खुद का मालिक बने, कम लागत के उद्योग, कम लागत, कम मेहनत और मुनाफा कई गुना, कम लागत में शुरू होने वाला उद्योग, अपना उद्योग, ऐसे कीजिए कम लागत में लाभकारी व्यवसाय, कम लागत मुनाफा कई गुना, उद्योग जो कम निवेश में लाखों की कमाई दे सकता है, 2018 में शुरू करें कम लागत में ज्यादा मुनाफे वाला बिज़नेस, भारत के लघु उद्योग, लघु उद्योग की जानकारीए लघु व कुटीर उद्योगए लघु उद्योग जो कम निवेश में लाखों की कमाई दे, महिलाओं के लिए लगाएंगे लघु उद्योग, छोटे एवं लघु उद्योग, नया व्यवसाय शुरू करें और रोजगार पायें लघु उद्योग, लघु उद्योग खोलने के फायदे, Top Best Small Business Ideas in India, Business Ideas With Low Investment, How to Get Rich?, Low Cost Business Ideas, Simple Low Cost Business Ideas, Top Small Business Ideas Low Invest Big Profit in India Smart Business Ideas, Very Low Budget Best Business Ideas, स्वरोजगार, लघु कुटीर उद्योग कैसे लगाएं, लघु उद्योग कैसे लगाएं, छोटे.छोटे उद्योग, लघु एवं गृह उद्योग, स्वरोजगार बेहतर भविष्य का नया विकल्प, अमीर बनने के तरीके, अवसर को तलाशें, आखिर गृह और कुटीर उद्योग कैसे विकसित हो, आप अपना कोई नया व्यवसाय व्यापारकारोबार कम पैसों में खड़ा करें, बड़ा बिजनेस, कम लागत में बेहतर मुनाफा, कुटीर उद्योग के नाम, नगरीय कुटीर उद्योग, कुटीर उद्योग लिस्ट, ग्रामीण कुटीर उद्योग, कुटीर उद्योग का महत्व, कुटीर उद्योग की सूची, कुटीर उद्योग के नाम, कुटीर उद्योग के प्रकार, स्वरोजगार के कुछ सरल उपाय, स्वरोजगार हेतु रियायती ऋण, स्वरोजगार योजनाओं, स्वरोजगार के लिए कौशल विकास, कम लागत में अधिक फायदेवाला बिजनेस, Small Business But Big Profit in India, Best Low Cost Business Ideas, Small Business Ideas that are Easy to Start, How to Start Business in India, Top Small Business Ideas in India for Starting Your Own Business, आधुनिक कुटीर एवं गृह उद्योगए, आप नया करोबार आरंभ करने पर विचार कर रहे हैं, उद्योग से सम्बंधित जरुरी जानकारी, औद्योगिक नीति, कम पूंजी के व्यापारए,कम पैसे के शुरू करें नए जमाने के ये हिट कारोबार,कम लागत के उद्योग, कम लागत वाले व्यवसाय, कम लागत वाले व्यवसाय व्यापार, कारोबार बढाने के उपाय, कारोबार योजना चुनें, किस वस्तु का व्यापार करें किससे होगा लाभ, कुटीर उद्योगए,कुटीर और लघु उद्यमों योजनाएं, कैसे उदयोग लगाये जाये, कौन सा व्यापार करे, कौन सा व्यापार रहेगा आपके लिए फायदेमंद, नौकरी या बेरोजगारी से हैं परेशान, Top Easy Small Business Ideas in India, Small Investment Big Returns